नई दिल्ली : हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) को बंद करने का आदेश दिया है। इस निर्णय के तहत, USAID के लगभग सभी कर्मचारियों को वैश्विक स्तर पर उनके पदों से हटा दिया गया है, जिससे छह दशकों से चल रही भूख, शिक्षा, और महामारी से लड़ने जैसी महत्वपूर्ण मिशन समाप्त हो गए हैं।
ट्रंप प्रशासन का आरोप है कि USAID ने अमेरिकी करदाताओं के धन का दुरुपयोग किया है और कुछ मामलों में आतंकवादी संगठनों को फंडिंग की है। एलन मस्क, जो हाल ही में सरकारी दक्षता विभाग (Department of Government Efficiency) के प्रमुख नियुक्त हुए हैं, ने USAID को “आपराधिक संगठन” कहा है और इसे बंद करने की सिफारिश की है।
इस निर्णय के परिणामस्वरूप, USAID के कई कार्यक्रम, जैसे कि दक्षिण अमेरिका में मानवीय सहायता, वर्षावन संरक्षण, और मादक पदार्थों के उन्मूलन से संबंधित परियोजनाएं, प्रभावित हो रही हैं। इसके अलावा, यूक्रेन जैसे देशों में भी मानवीय और आर्थिक संकट की आशंका बढ़ गई है, क्योंकि USAID की सहायता रुकने से कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं ठप हो गई हैं।
हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी संघीय एजेंसी को बंद करने का अधिकार केवल कांग्रेस के पास है, और ट्रंप प्रशासन का यह कदम अवैध हो सकता है। इसके बावजूद, प्रशासन ने USAID के कार्यक्रमों को रोकने और कर्मचारियों को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
इस निर्णय के खिलाफ अमेरिका में कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जहां प्रदर्शनकारी ट्रंप प्रशासन की नीतियों और USAID को बंद करने के फैसले का विरोध कर रहे हैं।