नई दिल्ली : छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के एक ऐसे नायक थे जिन्होंने अपने अदम्य साहस, कुशल नेतृत्व और राजनीतिक सूझबूझ से एक स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की स्थापना की। वे न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि एक न्यायप्रिय शासक और कुशल रणनीतिकार भी थे। उनकी वीरता और प्रशासनिक नीतियाँ आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।
प्रारंभिक जीवन
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी किले में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले एक प्रतिष्ठित मराठा सरदार थे, और उनकी माता जीजाबाई एक धर्मपरायण और विदुषी महिला थीं। माता जीजाबाई ने बचपन से ही शिवाजी को धर्म, राजनीति और युद्धकला की शिक्षा दी। दादा कोंडदेव उनके गुरु और मार्गदर्शक थे, जिन्होंने उन्हें युद्धकला और प्रशासनिक कार्यों में दक्ष बनाया।
स्वतंत्रता की नींव
शिवाजी महाराज ने बहुत ही कम उम्र में स्वराज की संकल्पना की थी। उन्होंने देखा कि किस प्रकार मुगल और आदिलशाही साम्राज्य स्थानीय लोगों पर अत्याचार कर रहे थे। इस अन्याय को समाप्त करने के लिए उन्होंने 1645 में स्वराज स्थापना की योजना बनाई और 1646 में तोरणा किले पर अधिकार कर लिया। यह उनके स्वतंत्र राज्य की स्थापना की दिशा में पहला कदम था।
सैन्य संगठन और युद्धनीति
शिवाजी महाराज की युद्धनीति बेहद अनोखी और प्रभावशाली थी। उन्होंने ‘गणिमी कावा’ (छापामार युद्धनीति) का इस्तेमाल कर अपने से अधिक शक्तिशाली शत्रुओं को हराया। उनकी सेना में घुड़सवारों और पैदल सैनिकों का बेहतरीन समन्वय था। उनके द्वारा निर्मित नौसेना भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। उन्होंने तटीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कई किलों का निर्माण और पुनर्निर्माण किया।
प्रमुख युद्ध और विजय
- प्रतापगढ़ का युद्ध (1659): अफजल खान के साथ हुआ यह युद्ध शिवाजी महाराज की कूटनीतिक और सैन्य कुशलता का परिचायक था। उन्होंने अफजल खान को पराजित कर मराठा साम्राज्य की शक्ति को बढ़ाया।
- सूरत की लूट (1664): मुगलों की समृद्धि के प्रतीक सूरत नगर को लूटकर शिवाजी ने अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया।
- पुरंदर की संधि (1665): इस संधि के तहत शिवाजी को अपने कुछ किले मुगलों को देने पड़े, लेकिन उन्होंने अपनी रणनीति से आगे चलकर पुनः शक्ति प्राप्त की।
- मुगल साम्राज्य से संघर्ष: औरंगजेब ने शिवाजी को रोकने के लिए कड़ी रणनीति अपनाई, लेकिन शिवाजी ने अपनी चतुराई से हमेशा मुगलों को परास्त किया।
राज्याभिषेक और शासन
6 जून 1674 को रायगढ़ किले में शिवाजी महाराज का भव्य राज्याभिषेक हुआ और उन्हें छत्रपति की उपाधि दी गई। उन्होंने एक संगठित प्रशासनिक प्रणाली बनाई, जिसमें उनके मंत्रिमंडल (अष्टप्रधान मंडल) की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनकी शासन नीति में न्याय, धर्म और समानता को प्राथमिकता दी गई। उन्होंने किसानों की भलाई के लिए कई नीतियाँ लागू कीं और भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास किया।
नौसेना और समुद्री शक्ति
शिवाजी महाराज पहले भारतीय शासक थे जिन्होंने एक संगठित नौसेना की स्थापना की। उन्होंने समुद्री तटों की सुरक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण किलों का निर्माण किया, जैसे सिंधुदुर्ग और विजयदुर्ग। उनकी नौसेना ने पुर्तगालियों, डच और अंग्रेजों के समुद्री हमलों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया।
धार्मिक सहिष्णुता
शिवाजी महाराज एक हिंदू शासक थे, लेकिन वे सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु थे। उन्होंने मुस्लिम नागरिकों और सैनिकों के साथ समान व्यवहार किया और मस्जिदों व दरगाहों की सुरक्षा सुनिश्चित की। उनकी धार्मिक नीतियाँ तत्कालीन मुगल शासकों की धार्मिक कट्टरता के विपरीत थीं।
उत्तराधिकार और निधन
शिवाजी महाराज का निधन 3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ किले में हुआ। उनके पुत्र संभाजी महाराज ने उनके राज्य को आगे बढ़ाया, लेकिन मुगलों और अन्य शत्रुओं के विरुद्ध संघर्ष जारी रहा। शिवाजी की मृत्यु के बावजूद उनकी विचारधारा और स्वराज की भावना जीवित रही और मराठा साम्राज्य ने आगे चलकर पूरे भारत में अपनी शक्ति स्थापित की।
छत्रपति शिवाजी महाराज केवल एक महान योद्धा ही नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी शासक और कुशल प्रशासक भी थे। उनकी युद्धनीति, प्रशासनिक दक्षता और स्वराज की अवधारणा आज भी प्रासंगिक हैं। वे भारतीय इतिहास में सदा अमर रहेंगे और उनकी वीरता और नीतियाँ आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।