नई दिल्ली : “मैं पल दो पल का शायर हूँ” हो या फिर “मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया”, साहिर लुधियानवी ने जो भी लिखा, वो अमर हो गया। ये कहना गलत नहीं होगा कि 8 मार्च 1921 को पंजाब के लुधियाना जिले में जन्मे साहिर अपने लेखन और विचारों की गहराई से कालजयी बन गए ।आम आदमी की भावनाओं, समाज की सच्चाइयों और प्रेम की नाजुक अभिव्यक्तियों को बखूबी चित्रित करने वाले साहिर का असली नाम अब्दुल हयी था, परन्तु वो जग में प्रसिद्ध हुए अपने तख़ल्लुस “साहिर” से ।
उनके जीवन की शुरुआती परिस्थितियाँ कठिनाइयों से भरी थीं। उनके पिता एक जागीरदार थे, लेकिन माता-पिता के तलाक के बाद वे अपनी माँ के साथ रहने लगे। इस पारिवारिक विघटन ने उनके विचारों और लेखन को गहराई से प्रभावित किया। साहिर ने अपनी शिक्षा लुधियाना और बाद में लाहौर में प्राप्त की। उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर में पढ़ाई की, जहाँ उनकी साहित्यिक प्रतिभा विकसित हुई। उनका पहला काव्य संग्रह “तल्ख़ियाँ” 1945 में प्रकाशित हुआ, जिसने उन्हें उर्दू साहित्य की दुनिया में प्रतिष्ठा दिलाई।
देश के विभाजन के बाद साहिर लुधियानवी भारत आ गए और मुंबई का रुख किया। यहाँ उन्हें बॉलीवुड में गीतकार के रूप में काम करने का अवसर मिला। 1951 में आई फिल्म “नौजवान” में उनका लिखा गीत “ठंडी हवाएं लहरा के आएं” काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद उन्होंने “बाजी” (1951), “प्यासा” (1957), “कभी कभी” (1976) जैसी कई हिट फिल्मों के लिए गीत लिखे। उनकी लेखनी ने फ़िल्मी गीतों में नए आयाम जोड़े और उन्हें नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।
साहिर का निजी जीवन भी उनकी कविताओं की तरह भावनाओं से भरा रहा। वे अमृता प्रीतम से प्रेम करते थे, लेकिन यह प्रेम कभी परिणय सूत्र में नहीं बंध सका। उनके जीवन में सुधा मल्होत्रा का भी स्थान रहा, लेकिन वे कभी विवाह के बंधन में नहीं बंधे। उन्होंने अपना पूरा जीवन लेखनी को समर्पित किया और अपने शब्दों के माध्यम से प्रेम और समाज की सच्चाई को बयां किया।
साहिर लुधियानवी को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1971 में पद्मश्री से नवाजा गया। इसके अलावा, उन्होंने कई बार फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीते।