नई दिल्ली : रविंद्र जैन भारतीय संगीत के उन महान संगीतकारों में से एक थे जिन्होंने अपनी प्रतिभा, मेहनत और लगन से संगीत जगत में एक अमिट छाप छोड़ी। वे न केवल एक बेहतरीन संगीतकार थे, बल्कि एक कुशल गीतकार और गायक भी थे। उनकी रचनाएँ भारतीय संगीत की गहराई और संस्कृति को दर्शाती हैं। उनके गानों में सादगी, मधुरता और आत्मीयता की झलक मिलती है।
रविंद्र जैन का जन्म 28 फरवरी 1944 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में हुआ था। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जो धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में गहरी आस्था रखता था। दुर्भाग्यवश, वे जन्म से ही नेत्रहीन थे, लेकिन उनकी संगीत के प्रति रुचि बचपन से ही प्रबल थी। उनके पिता पंडित इंद्रमणि जैन और माता किरण जैन ने उनकी संगीत प्रतिभा को पहचाना और उन्हें प्रोत्साहित किया।
शिक्षा और संगीत की ओर रुझान
रविंद्र जैन को बचपन से ही संगीत में रुचि थी। उनके पिता ने उनके इस हुनर को निखारने के लिए उन्हें शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दिलवाई। उन्होंने विभिन्न संगीत गुरुओं से संगीत सीखा और धीरे-धीरे एक कुशल संगीतकार बनने की ओर बढ़े।
रविंद्र जैन का सफर आसान नहीं था। एक नेत्रहीन संगीतकार के लिए फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाना कठिन था, लेकिन उनकी प्रतिभा इतनी विलक्षण थी कि उन्होंने स्वयं को साबित कर दिखाया। 1970 के दशक में उन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग में कदम रखा और अपनी मधुर धुनों और हृदयस्पर्शी गीतों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
करियर की प्रमुख फिल्में और गीत
रविंद्र जैन का फिल्मी सफर बेहद सफल रहा। उन्होंने कई हिट फिल्मों में संगीत दिया और अपने गानों से लोगों का दिल जीत लिया। उनकी रचनाओं में सौदागर, चोर मचाये शोर, चितचोर, गीत गाता चल, फकीरा, अंखियों के झरोखों से, दुल्हन वही जो पिया मन भाये, पहेली, दो जासूस, पति पत्नी और वो, इंसाफ का तराजू, नदिया के पार, राम तेरी गंगा मैली और हीना आदि शामिल हैं, जिनका गीत संगीत आज भी कर्णप्रिय होने के साथ साथ आज के युवाओ में चर्चित भी है । उन्होंने अपने गाने गाने के लिए येसुदास और हेमलता का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया।
टेलीविजन में योगदान
रविंद्र जैन ने केवल फिल्मों में ही नहीं, बल्कि टेलीविजन जगत में भी अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने कई धार्मिक और पौराणिक धारावाहिकों के लिए संगीत दिया, जिनमें सबसे प्रसिद्ध “रामायण” (1987) है। इस धारावाहिक में उनके द्वारा दिया गया संगीत भारतीय टेलीविजन इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। “रामायण” के भजन और गीत आज भी भक्ति संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं।
संगीत की शैली
रविंद्र जैन की संगीत शैली भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत पर आधारित थी। उन्होंने अपने गीतों में सरल शब्दों का प्रयोग किया, जिससे वे आम जनता के दिलों तक आसानी से पहुँच सके। उनकी धुनों में भारतीयता की सुगंध थी और उनके गानों में एक गहरी आत्मीयता थी।
पुरस्कार और सम्मान
रविंद्र जैन को उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। कुछ प्रमुख पुरस्कार इस प्रकार हैं:
- फिल्मफेयर पुरस्कार – सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के लिए नामांकित और सम्मानित।
- राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – संगीत में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित।
- पद्मश्री पुरस्कार – 2015 में भारत सरकार द्वारा दिया गया यह सम्मान उनके जीवन की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक था।
निजी जीवन और संघर्ष
रविंद्र जैन का निजी जीवन काफी प्रेरणादायक था। उन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमता को कभी अपने लक्ष्य के आड़े नहीं आने दिया। उनकी पत्नी दिव्य जैन ने भी हर मोड़ पर उनका साथ दिया और उनके संघर्षों में उनकी सहयोगी बनीं। रविंद्र जैन का निधन 9 अक्टूबर 2015 को हुआ, लेकिन उनकी संगीत यात्रा कभी खत्म नहीं होगी। उन्होंने भारतीय संगीत जगत को जो अमूल्य धरोहर दी, वह सदैव अमर रहेगी। उनके गीत आज भी सुने जाते हैं और नई पीढ़ी के संगीतकारों को प्रेरणा देते हैं।
रविंद्र जैन भारतीय संगीत जगत के एक अनमोल रत्न थे। उन्होंने यह साबित कर दिया कि प्रतिभा किसी शारीरिक कमी की मोहताज नहीं होती। उनकी मधुर धुनें, भावपूर्ण गीत और भक्ति संगीत हमेशा संगीत प्रेमियों के हृदय में जीवित रहेंगे। भारतीय संगीत में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।