नई दिल्ली : भारतीय सिनेमा के इतिहास में यदि किसी खलनायक ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है, तो वह नाम है “प्राण”। अपनी दमदार अदाकारी, प्रभावशाली संवाद अदायगी और डरावनी आंखों से उन्होंने हिंदी सिनेमा के खलनायकों को एक नई पहचान दी।
प्रारंभिक जीवन और करियर की शुरुआत
प्राण का पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था। उनका जन्म 12 फरवरी 1920 को लाहौर में हुआ था। उन्होंने लाहौर में अपनी पढ़ाई पूरी की और वहां के सिनेमाघरों में पोस्टर बनाने का काम शुरू किया। संयोगवश, एक फिल्म निर्माता ने उन्हें 1940 में पंजाबी फिल्म यमला जट में अभिनय का मौका दिया। इस फिल्म में उनकी भूमिका को खूब सराहा गया और यह उनके लिए फिल्मी दुनिया में प्रवेश का द्वार बन गई।
बॉलीवुड में खलनायकी की पहचान
प्राण ने 1940 के दशक में कई फिल्मों में काम किया, लेकिन विभाजन के बाद उन्हें मुंबई आना पड़ा। 1950 के दशक में बड़ी बहन और आन जैसी फिल्मों से उन्होंने बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई। इसके बाद, उन्होंने मधुमती (1958), जिस देश में गंगा बहती है (1960), राम और श्याम (1967), जंजीर (1973) जैसी फिल्मों में बेहतरीन खलनायक की भूमिका निभाई। उनकी संवाद अदायगी और नेगेटिव किरदारों की विविधता ने उन्हें दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया।
एक अभिनेता, जो हर किरदार में ढल गया
प्राण सिर्फ खलनायकी तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने ऊंचे लोग (1965), विक्टोरिया नंबर 203 (1972), अमर अकबर एंथनी (1977) जैसी फिल्मों में हास्य और सकारात्मक भूमिकाएं भी निभाईं। खासतौर पर जंजीर में अमिताभ बच्चन के साथ उनकी “शेर खान” की भूमिका आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई है।
सम्मान और पुरस्कार
प्राण को उनके अभिनय के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले:
- फिल्मफेयर पुरस्कार: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए तीन बार
- दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (1997): भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए
- पद्म भूषण (2001): भारत सरकार द्वारा सम्मानित
निधन
12 जुलाई 2013 को प्राण का निधन हो गया, लेकिन उनकी अदाकारी और अनगिनत यादगार किरदार आज भी अमर हैं। उन्होंने जिस तरह से खलनायक की भूमिका को जीवंत बनाया, वह हिंदी सिनेमा के लिए हमेशा एक प्रेरणा बना रहेगा।