नई दिल्ली : भारतीय सिनेमा का परिदृश्य विविधता और गहराई से भरा हुआ है। विभिन्न फिल्मकारों ने अपने अनूठे दृष्टिकोण से समाज के विभिन्न पहलुओं को बड़े पर्दे पर प्रस्तुत किया है। इन्हीं में से एक प्रमुख नाम है प्रकाश झा, जो अपनी यथार्थवादी और सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्मों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी फिल्मों में भारतीय राजनीति, सामाजिक न्याय, अपराध, भ्रष्टाचार, और प्रशासनिक विफलताओं की सजीव झलक देखने को मिलती है।
प्रकाश झा का जन्म 27 फरवरी 1952 को बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिहार में ही प्राप्त की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय में विज्ञान की पढ़ाई करने गए। हालांकि, कला और सिनेमा के प्रति उनकी रुचि उन्हें मुंबई ले गई, जहां उन्होंने प्रतिष्ठित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे में अध्ययन किया। इसी दौरान उन्होंने फिल्म निर्माण की बारीकियों को समझा और सिनेमा को समाज परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम बनाने की दिशा में कार्य किया।
फिल्मी करियर की शुरुआत
प्रकाश झा ने अपने करियर की शुरुआत वृत्तचित्रों से की। उनकी पहली डॉक्यूमेंट्री फिल्म “अंडर द ब्लू” थी, जो काफी सराही गई। इसके बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण वृत्तचित्र बनाए, जिनमें “फेस्सेस आफ स्टोन” और “सोनल” शामिल हैं। “सोनल” नामक वृत्तचित्र को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
1979 में उन्होंने अपनी पहली फीचर फिल्म “हिप हिप हुर्रे” का निर्देशन किया, जो एक स्पोर्ट्स ड्रामा थी। लेकिन उन्हें असली पहचान 1984 में आई फिल्म “दामुल” से मिली, जो भारतीय राजनीति और जातिवाद पर आधारित थी। यह फिल्म राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हुई और प्रकाश झा को यथार्थवादी सिनेमा के सशक्त निर्देशक के रूप में स्थापित किया।
सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आधारित फिल्में
प्रकाश झा की फिल्में मुख्य रूप से सामाजिक-राजनीतिक विषयों को केंद्र में रखती हैं। उन्होंने कई महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्देशन किया, जो भारतीय समाज की समस्याओं को उजागर करती हैं।
दामुल (1984)
यह फिल्म बिहार के जमींदारी प्रथा और जातिगत भेदभाव पर आधारित थी। इसने न केवल आलोचकों से प्रशंसा प्राप्त की, बल्कि राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीता।
मृत्युदंड (1997)
इस फिल्म में महिलाओं के संघर्ष और सशक्तिकरण की कहानी दिखाई गई थी। इसमें माधुरी दीक्षित, शबाना आज़मी और ओम पुरी जैसे कलाकारों ने अभिनय किया।
गंगाजल (2003)
यह फिल्म बिहार की कानून व्यवस्था और पुलिस व्यवस्था पर केंद्रित थी। अजय देवगन अभिनीत इस फिल्म ने पुलिस और अपराधियों के बीच संघर्ष को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया।
अपहरण (2005)
इस फिल्म ने अपहरण उद्योग और राजनीतिक गठजोड़ को उजागर किया। अजय देवगन और नाना पाटेकर की इस फिल्म को दर्शकों ने खूब सराहा।
राजनीति (2010)
यह फिल्म महाभारत से प्रेरित थी और भारतीय राजनीति के अंदरूनी खेल को प्रदर्शित करती थी। इसमें रणबीर कपूर, कटरीना कैफ, अजय देवगन, अर्जुन रामपाल, और नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकार शामिल थे।
आरक्षण (2011)
यह फिल्म भारतीय शिक्षा प्रणाली में आरक्षण नीति और इसके प्रभाव पर केंद्रित थी। अमिताभ बच्चन, सैफ अली खान और दीपिका पादुकोण ने इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई।
सत्याग्रह (2013)
यह फिल्म भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पर आधारित थी और इसमें अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, और करीना कपूर मुख्य भूमिकाओं में थे।
प्रकाश झा का समाज और राजनीति पर प्रभाव
प्रकाश झा सिर्फ फिल्म निर्माता नहीं बल्कि सामाजिक कार्यों और राजनीति में भी सक्रिय रहे हैं। उन्होंने बिहार के चंपारण से लोकसभा चुनाव भी लड़ा, हालांकि सफलता नहीं मिली। लेकिन उनके प्रयासों से यह स्पष्ट होता है कि वे केवल फिल्मों के माध्यम से ही नहीं बल्कि प्रत्यक्ष रूप से भी समाज में बदलाव लाने के इच्छुक हैं।
टेलीविजन और वेब सीरीज
हाल के वर्षों में प्रकाश झा ने डिजिटल माध्यम में भी कदम रखा। उनकी वेब सीरीज ‘आश्रम’ (2020) को भारी सफलता मिली, जिसमें बॉबी देओल ने मुख्य भूमिका निभाई। यह सीरीज धर्म और राजनीति के गठजोड़ पर आधारित थी।
पुरस्कार और सम्मान
प्रकाश झा को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर अवॉर्ड शामिल हैं। उनकी फिल्मों को न केवल भारत में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना मिली है।
प्रकाश झा भारतीय सिनेमा के उन चुनिंदा निर्देशकों में से एक हैं, जिन्होंने समाज की सच्चाई को बिना किसी लाग-लपेट के प्रस्तुत किया। उनकी फिल्में न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि दर्शकों को सोचने पर भी मजबूर करती हैं। वे एक ऐसे फिल्मकार हैं, जिन्होंने अपनी कला के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया है। भविष्य में भी उनसे इसी तरह की सार्थक और यथार्थवादी फिल्मों की उम्मीद की जाती है।