नई दिल्ली : आंचलिक कथा साहित्य को एक नई दिशा देने वाले हिन्दी साहित्यकारों से एक, जिन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों में भारतीय ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण किया, उनका नाम है फणीश्वर नाथ ‘रेणु’। ये उनकी कलम का जादू ही था कि उनकी भाषा, शैली, और पात्रों की जीवंतता पढने वालों को ग्रामीण जीवन का अनूठा एहसास कराती है।
4 मार्च 1921 को बिहार के अररिया जिले के औराही हिंगना गाँव में जन्मे फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की प्रारंभिक शिक्षा नेपाल में हुई और बाद में उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की। न केवल एक साहित्यकार के तौर पर, बल्कि स्वतंत्रता संग्रामी के रूप में भी रेणु सक्रिय रहे, जिसके चलते उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और सामाजिक संघर्षों में भी अग्रणी रहे।
रेणु का साहित्य मुख्य रूप से आंचलिकता के लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने बिहार और उत्तर भारत के ग्रामीण परिवेश को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया। उनकी लेखनी आमजन के दुःख-सुख, प्रेम, सामाजिक संघर्ष, और राजनैतिक परिवर्तनों को सजीव रूप से उकेरती है।
प्रमुख कृतियाँ
- मैला आँचल (1954) – यह उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसे हिन्दी साहित्य में आंचलिकता का प्रथम और सर्वश्रेष्ठ उदाहरण माना जाता है। इस उपन्यास में बिहार के ग्रामीण जीवन, स्वतंत्रता संग्राम, और सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों को अद्वितीय शैली में प्रस्तुत किया गया है। ‘मैला आँचल’ को हिन्दी में ‘गोदान’ के बाद दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास माना जाता है।
- परती परिकथा – यह उपन्यास ग्रामीण समाज की जटिलताओं और बदलते सामाजिक परिदृश्य को उकेरता है।
- दीर्घतपा – इस उपन्यास में संघर्षशील नायक के माध्यम से सामाजिक यथार्थ को चित्रित किया गया है।
- ठुमरी – यह उनकी प्रसिद्ध कहानी संग्रहों में से एक है।
- पंचलाइट, रसप्रिया, तीसरी कसम (मारे गए गुलफाम) जैसी कहानियाँ भी अत्यंत लोकप्रिय हुईं।
फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ को उनकी उत्कृष्ट साहित्यिक सेवा के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनकी कहानी मारे गए गुलफाम पर आधारित फिल्म तीसरी कसम को भी राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हुई। 11 अप्रैल 1977 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हिन्दी साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।