सत्येन्द्र प्रकाश
बीती रात करीब डेढ़ बजे मेरे लड़के ने मेरे कमरे में अचानक आ कर बोला, पापा अटैक कर दिया इंडिया ने। वह इतना कहके वापस हो गया। मुझे लगा क्या शानदार तरीका निकाला हमारी जांबाज सेना ने। इधर देश में युद्ध की स्थिति में बम धमाके आदि बचने के लिए विभिन्न क्षेत्रों/शहरों में मॉकड्रिल की तारीखें और समय तय कर दिया गया। सभी डीएम एसपी, कमिश्नर को ताक़ीद कर दी गई। झांसी प्रतापगढ़ आदि कुछ जगहों पर मॉकड्रिल जैसा माहौल भी देखा – सुना गया। लोग अभी देश ज्यादातर हिस्से के लिए तय की गई मॉकड्रिल की तारीख की सुबह इंतजार कर ही रहे थे कि इस बीच बहुत ही गुप-चुप तरीके से भारत की तीनों सेनाओं ने अदभुत तालमेल और जांबाजी का प्रदर्शन करते हुए आतंक की फैक्टरी और निर्यातक बने पाकिस्तान स्थित लश्कर और जैश ए मोहम्मद के करीब नौ ठिकानों पर सटीक हमला करके उन्हें तहस – नहस कर दिया।इस हमले में जैश के सरगना अज़हर मसूद का घर- परिवार और वहीं स्थित उसके आतंकी संगठन का मुख्यालय नेस्तनाबूद हो गया। और बड़ी बड़ी गीदड़ भभकी देने वाला बिलबिला उठा। ख़बरें आ रहीं कि अब वह रो रो कर कह रहा है कि “मैं भी मर गया होता तो अच्छा होता।” हालांकि यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि यह उसका नाटक है या हारे का हरि(अल्लाह) नाम है और इसके पीछे कोई कायराना सरअंजाम है।
खैर, पुलवामा, पहलगाम में नरसंहार, 26 पर्यटकों की हत्या, आतंकियों ने धर्म पूछ कर की पुरुषों की हत्या, और महिलाओं से कहा, तुम्हें इसलिए छोड़ रहे हैं कि ‘जा कर मोदी को बताओ ‘, आतंकी पाकिस्तानी हैं, उन्हें वहीं से ट्रेंड करके भेजा गया। या फिर यह खुफिया तंत्र, पुलिस प्रशासन और अंततः शासन की चूक है’ जैसी चर्चाओं को विराम देने और आतंक का पालक/संचालक पड़ोसी देश को सीख देने के लिए उठाए गए “ऑपरेशन सिंदूर” जैसे साहसिक कदम के लिए सेना और सरकार की जितनी सराहना की जाए कम है। सराहना विपक्षी दलों और देश की 140 करोड़ जनता की भी होनी ही चाहिए जो सुरक्षा चूक, लापरवाही, राजनीति जैसे सवालों को दरकिनार रखकर आतंक के गढ़ पाकिस्तान को सबक सिखाने के मामले में सरकार के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खड़ी हुई और कहीं न कहीं इस हिम्मत अफजाई से सत्ता और सेना में जोश भरा। ( इस बीच अगर दूर की कौड़ी न माना जाए, तो एक दिन पहले पीएमओ में हुई सरकार की अहम बैठक में अप्रत्याशित रूप से नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का शामिल होना भी सरकार के फैसले में अहम भूमिका का संकेत करता है।) कहीं न कहीं इसी का नतीजा 6 और 7 की रात में पूरे विश्व को देखने को मिला। कहना गलत न होगा कि इस हमले से पाकिस्तान सरकार और (उसको उंगलियों पर नचाने वाली सेना) के हुक्मरान घुटनों पर आ गए।
भारत ने न केवल ऑपरेशन सिंदूर नाम देकर आतंकियों की देश की 25 और 1 मित्र पड़ोसी नेपाल की महिलाओं का सुहाग/आसरा छीनने की क्रूर कायराना हरकत की उसका बदला ले लिया। भारत ने दरअसल पाकिस्तान को भूखों मारने की मुकम्मल व्यवस्था कर दी है। जहां एक तरफ़ उसकी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले आतंक के कारखाने को बरबाद किया, वहीं दूसरी ओर सिंधु नदी के पानी पर रोक लगा कर पंजाब (पाकिस्तान) के सबसे उपजाऊ इलाके की हरियाली और उपज पर कुठाराघात किया है।
गो कि भारत का यह हमला सिर्फ़ और सिर्फ़ आतंक की फसल नष्ट करने के इरादे से किया। और सीधे उसी को टार्गेट किया। फिलहाल इस हमले से नागरिक या सैन्य क्षेत्र में किसी प्रकार के जन-धन हानि की सूचना नहीं है।
ये बात अलग है कि पाकिस्तान बेहद डरा हुआ है और अपने इस डर को छुपाने के लिए वह सीमा पर जवाबी फायरिंग और कुछ भारतीयों के मारे जाने की खबर फैला रहा है। इस सूचना में कुछ सत्यता स्वीकारने वालों का कहना है कि यह सीमा क्षेत्र में दोनों तरफ़ से अक्सर होने वाली कारवाई जैसी घटना ही है। पाकिस्तान हमला करने की बात तो पहले से ही कर रहा है लेकिन कहने और करने में जमीन आसमान का अंतर है, खासकर पाकिस्तान के लिए जो दाने दाने को मोहताज तो है ही, साथ ही उसके दोनों आकाओं अमेरिका और चीन में से शायद अभी किसी का भी इशारा नहीं मिला है। चीन भारत को चिढ़ाने के लिए उसके (पाक) सिर पर अपना हाथ रखने का दिखावा तो करता है लेकिन वह सीधे भारत के खिलाफ उसके दुश्मन के साथ खड़ा होकर अपने हजारों करोड़ के व्यापार नुकसान किसी भी हालत में नहीं करना चाहेगा। रही बात अमेरिका की तो अमेरिका पाकिस्तान को मरने तो नहीं देना चाहता है, लेकिन वह उसे मोटा होते, ज़्यादा बढ़ते भी नहीं देखना चाहता। कल हमले के बाद ही उनका इशारा दोनों देशों के लिए युद्ध में न उतरने का था।
अब पाकिस्तान के आर्मी चीफ़ जनता और अधिकारियों में जोश भरने, या कहें दिलासा देने में लगे हैं। कह रहे हैं हम जिन्ना के वंशज हैं, हम अपने में आला हैं। हम वन नेशन थियरी वाले हैं, हमारी बराबरी कोई नहीं कर सकता। वैसे कुल मिलाकर यह एक डरे हुए व्यक्ति का ख़ुद को निडर ही नहीं, बल्कि ताकतवर दिखाने की असफल कोशिश जैसा ही है। एक प्रतिशत इसे सही भी मान लिया जाए, तो भारत हाथ पर हाथ धरे बैठने वाला नहीं है। इसका अंदाज़ा धरती, सागर से लेकर आसमान तक चल रही सशक्त तैयारियों से लगाया जा सकता है। पाकिस्तान डर की तात्कालिक वजह यह भी है, खासकर तब जब उसकी मदद को आए देश (तुर्की) की सेनाएं मैदान छोड़कर भाग रही हैं।