नई दिल्ली : सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, लेखक और निबंधकार थे, जिन्होंने छायावाद के चार स्तंभों में से एक के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनका जन्म 21 फरवरी 1899 को बंगाल के महिषादल (वर्तमान में पश्चिम बंगाल) में हुआ था। उनकी रचनाएँ स्वतंत्रता, समाज सुधार और मानवतावाद से ओतप्रोत थीं। निराला जी का साहित्यिक योगदान हिंदी भाषा और साहित्य के लिए अद्वितीय है।
साहित्यिक योगदान
निराला ने कविता, निबंध, उपन्यास और कहानियों के माध्यम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनकी प्रमुख कृतियों में ‘सरोज स्मृति’, ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘कुल्ली भाट’, ‘चतुरी चमार’ और ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ शामिल हैं। उन्होंने हिंदी कविता को छायावादी भावबोध से आगे ले जाकर सामाजिक यथार्थवाद और प्रगतिशील विचारधारा से जोड़ा।
छायावाद और निराला
छायावाद हिंदी साहित्य में एक प्रमुख काव्य आंदोलन था, जिसने हिंदी कविता को नवीन संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति दी। निराला ने इसे एक नई दिशा दी और परंपरागत शैली से हटकर मुक्त छंद की शुरुआत की। उनकी कविताएँ व्यक्तिगत वेदना, समाज सुधार और स्वाभिमान की अभिव्यक्ति थीं। उनकी कविता ‘वह तोड़ती पत्थर’ श्रमिक वर्ग की पीड़ा और संघर्ष को दर्शाती है।
समाज सुधारक दृष्टिकोण
निराला सिर्फ साहित्यकार ही नहीं, बल्कि समाज सुधारक भी थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह और नारी शिक्षा का समर्थन किया। उनकी रचनाओं में दलितों और पिछड़ों के प्रति सहानुभूति साफ झलकती है।
भाषा और शैली
निराला की भाषा सरल, सशक्त और प्रभावशाली थी। उन्होंने संस्कृतनिष्ठ हिंदी का प्रयोग किया, लेकिन उनकी शैली में नवाचार और प्रयोगशीलता थी। उनकी रचनाएँ पाठकों के मन-मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ती हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हिंदी साहित्य के एक युग प्रवर्तक रचनाकार थे। उन्होंने हिंदी कविता को एक नई दिशा दी और समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया। 15 अक्टूबर 1961 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हिंदी साहित्य को प्रेरणा देती हैं।