नई दिल्ली : भारतीय संस्कृति में संक्रांति का विशेष महत्व है क्योंकि यह सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने की प्रक्रिया को दर्शाता है। संक्रांति माघ महीने में आने वाली कुम्भ संक्रांति एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो सूर्य के मकर से कुम्भ राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से पवित्र नदियों में स्नान, दान और पुण्य कार्यों के लिए उत्तम मानी जाती है।
खगोलीय महत्व
संक्रांति शब्द का अर्थ होता है ‘सूर्य का संक्रमण’। जब सूर्य मकर राशि से आगे बढ़कर कुम्भ राशि में प्रवेश करता है, तो इसे कुम्भ संक्रांति कहते हैं। यह खगोलीय घटना साल में एक बार घटित होती है और इस दौरान दिन की अवधि में परिवर्तन देखने को मिलता है।
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
कुम्भ संक्रांति का धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। इस दिन गंगा, यमुना, नर्मदा और गोदावरी जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास किया जाता है। विशेष रूप से प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में कुंभ मेले का आयोजन भी इसी संक्रांति के आसपास होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे पुण्य लाभ प्राप्त होता है।
पर्व का आयोजन और परंपराएँ
- पवित्र नदियों में स्नान: इस दिन श्रद्धालु प्रातःकाल उठकर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
- दान-पुण्य: इस संक्रांति पर दान का विशेष महत्व होता है। अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़, घी और स्वर्ण का दान किया जाता है।
- जप और हवन: कई भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। हवन और मंत्रोच्चार द्वारा भगवान विष्णु और सूर्यदेव की आराधना की जाती है।
- कुंभ मेले का आयोजन: कुंभ संक्रांति के दौरान कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं और साधु-संतों का दर्शन करते हैं।
साथ ही, इस दिन (कुंभ संक्रांति) का व्रत रखने से शनि के प्रभाव से होने वाली कठिनाइयाँ कम करने में मदद मिलती है। इस वर्ष यह पर्व 12 फरवरी को मनाया जाएगा।