नई दिल्ली : भारतीय फिल्म संगीत जगत में जब भी मधुर, भावपूर्ण और गहरे अर्थों वाले संगीत की बात होती है, तब खय्याम का नाम सम्मान से लिया जाता है। खय्याम, जिनका पूरा नाम मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी था, हिंदी सिनेमा के उन चुनिंदा संगीतकारों में से एक थे, जिन्होंने अपनी अनूठी शैली और संवेदनशील धुनों से संगीत प्रेमियों के दिलों में एक खास जगह बनाई। खय्याम का संगीत हमेशा मेलोडी और लयकारी पर आधारित रहा। वे ग़ज़लनुमा धुनों, शास्त्रीयता और नज़ाकत से भरे संगीत के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने कभी भी भीड़ के पीछे चलने की बजाय अपनी अनूठी शैली बनाए रखी। उनके संगीत की विशेषता यह थी कि वह गीत के बोलों की आत्मा को बनाए रखते हुए संयत और गहरे प्रभाव वाले धुनों की रचना करते थे।
प्रारंभिक जीवन
खय्याम का जन्म 18 फरवरी 1927 को अविभाजित भारत के पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनका झुकाव बचपन से ही संगीत की ओर था। उन्होंने लाहौर और दिल्ली में संगीत की शिक्षा प्राप्त की और पंडित अमरनाथ से शास्त्रीय संगीत की बारीकियाँ सीखीं। शुरुआती दौर में उन्होंने कुछ समय तक संगीतकार जोड़ी “शर्मा-खय्याम” के रूप में भी काम किया।
संगीत करियर की शुरुआत
खय्याम ने 1948 में फिल्म “हीर रांझा” से अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन उन्हें असली पहचान 1953 में आई फिल्म “फुटपाथ” के संगीत से मिली। इस फिल्म का गीत “शामे ग़म की कसम” (गायक : तलत महमूद) बेहद लोकप्रिय हुआ और उनके संगीतमय सफर की दिशा को नया मोड़ मिला।
सर्वश्रेष्ठ कृतियाँ
खय्याम ने अपने करियर में कई कालजयी धुनें दीं। उनके कुछ सबसे लोकप्रिय और अमर गीत इस प्रकार हैं:-
कभी कभी (1976)
- “कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है” (गायक: मुकेश)
- “तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती” (गायक: किशोर कुमार)
उमराव जान (1981)
- “दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिए” (गायिका: आशा भोसले)
- “इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं”
- “ये क्या जगह है दोस्तों”
रज़िया सुल्तान (1983)
- “ऐ दिल-ए-नादान, आरज़ू क्या है” (गायिका: लता मंगेशकर)
शगुन (1964)
- “तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो” (गायक: जगजीत कौर)
इनके अलावा “नूरी” (1979) और “त्रिशूल” (1978) जैसी फिल्मों के गाने भी खूब पसंद किए गए।
सम्मान और पुरस्कार
खय्याम को उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया:
- राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1982) – उमराव जान के संगीत के लिए
- फिल्मफेयर अवार्ड (1977, 1982)
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
- पद्म भूषण (2011) – भारत सरकार द्वारा दिया गया तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान
व्यक्तिगत जीवन और विरासत
खय्याम की शादी प्रसिद्ध गायिका जगजीत कौर से हुई थी, जो उनकी कई रचनाओं में स्वर देने वाली प्रमुख गायिका थीं। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में संगीत और समाज सेवा को समर्पित कर दिया और अपनी अधिकांश संपत्ति गरीब कलाकारों की सहायता के लिए दान कर दी।
खय्याम का निधन 19 अगस्त 2019 को 92 वर्ष की आयु में हुआ। उनकी मृत्यु भारतीय संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति थी, लेकिन उनकी संगीतमय विरासत सदैव जीवित रहेगी। खय्याम ने फिल्मी दुनिया में अपनी जगह महज धूमधड़ाके वाले संगीत से नहीं, बल्कि दिल को छू लेने वाली धुनों से बनाई। उनके गाने समय की सीमाओं को लांघकर आज भी सुनने वालों को उसी भावनात्मक गहराई में डुबो देते हैं। उनकी अनूठी संगीत शैली, संयमित ऑर्केस्ट्रेशन और ग़ज़लनुमा ट्रीटमेंट उन्हें अन्य संगीतकारों से अलग खड़ा करता है। खय्याम का संगीत एक ऐसा खज़ाना है, जो भारतीय फिल्म संगीत प्रेमियों के दिलों में हमेशा बसा रहेगा।