नई दिल्ली : भावपूर्ण आवाज़, गहराई से भरे लफ़्ज़ों और संजीदा अंदाज़ से ग़ज़लों को आम लोगों तक पहुँचाने वाले जगजीत सिंह को भारतीय संगीत जगत में ग़ज़ल गायिकी का पर्याय माना जाता हैं। बता दे कि वे न सिर्फ़ एक गायक थे, बल्कि संगीतकार और गीतकार भी थे, जिन्होंने ग़ज़ल गायिकी में नयी जान फूंक दी।
जगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी 1941 को श्री गंगानगर, राजस्थान में हुआ था। उनका पूरा नाम जगमोहन सिंह धीमान था। उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे और चाहते थे कि उनका बेटा प्रशासनिक सेवा में जाए, लेकिन जगजीत सिंह का झुकाव संगीत की ओर था। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने उस्ताद जमाल खान और पंडित छगनलाल शर्मा से ली। आगे की पढ़ाई के लिए वे जालंधर के डीएवी कॉलेज गए और फिर मुंबई की ओर रुख किया, जहाँ उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की।
1960 के दशक में मुंबई में अपने पैर जमाना उनके लिए आसान नहीं था। शुरुआती दौर में उन्होंने कई संघर्ष किए, लेकिन धीरे-धीरे उनकी आवाज़ का जादू चलने लगा। 1976 में उनकी पत्नी चित्रा सिंह के साथ आई एल्बम “The Unforgettable” ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई। यह एल्बम भारतीय ग़ज़ल संगीत की दिशा बदलने वाली साबित हुई।
इसके बाद उन्होंने कई प्रसिद्ध एल्बम निकाले, जिनमें “Echoes”, “Mirage”, “A Sound Affair”, “Forget me Not”और “Beyond Time” प्रमुख हैं। उनकी आवाज़ की गहराई और उनकी गायिकी का अंदाज़ लोगों के दिलों को छूने लगा।
जगजीत सिंह की गाई हुई ग़ज़लें और गीत आज भी श्रोताओं के दिलों में बसे हुए हैं। उनकी कुछ लोकप्रिय ग़ज़लें हैं:-
- “होठों से छू लो तुम”
- “चिट्ठी न कोई संदेश”
- “वो कागज़ की कश्ती”
- “तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो”
- “झुकी झुकी सी नज़र”
- “हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी”
उन्होंने न सिर्फ़ ग़ज़लें गाईं, बल्कि बॉलीवुड फिल्मों में भी गाने गाए। फिल्म “अर्थ”, “साथ साथ”, और “सरफ़रोश” में उनकी आवाज़ सुनने को मिली।
जहाँ पहले ग़ज़ल को शास्त्रीय संगीत से जोड़कर देखा जाता था, वहीं जगजीत सिंह ने इसे आम लोगों तक पहुँचाने के लिए सरल बनाया। उन्होंने वाद्ययंत्रों का बेहतरीन इस्तेमाल किया और ग़ज़लों में मॉडर्न म्यूज़िक का समावेश किया, जिससे युवा वर्ग भी उनकी गायिकी का दीवाना हो गया।
जगजीत सिंह और उनकी पत्नी चित्रा सिंह की जोड़ी संगीत जगत में बहुत प्रसिद्ध रही। लेकिन उनका निजी जीवन एक दर्दनाक मोड़ से गुज़रा जब 1990 में उनके बेटे विवेक की मृत्यु हो गई। इस हादसे ने चित्रा सिंह को गाने से दूर कर दिया, जबकि जगजीत सिंह ने अपने संगीत के माध्यम से इस दुख को सहने की ताकत जुटाई।
उनके योगदान को देखते हुए उन्हें कई बड़े सम्मान मिले, जिनमें शामिल हैं:
- 1987 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री सम्मान
- 2003 में पद्म भूषण सम्मान
- 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
- ग़ज़ल गायिकी में अद्वितीय योगदान के लिए कई फिल्मफेयर और राष्ट्रीय पुरस्कार
10 अक्टूबर 2011 को ब्रेन हेमरेज के कारण जगजीत सिंह का निधन हो गया, लेकिन उनकी ग़ज़लें आज भी अमर हैं। उनकी सुरीली आवाज़, ग़ज़लों में छुपे एहसास और उनके संगीत की गहराई उन्हें हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित रखेगी।
“तू नहीं, तेरा ग़म, तेरी जुस्तजू भी नहीं… तू जो मुझसे कभी मिला ही नहीं, फिर क्यूँ तेरा इंतज़ार करता हूँ?” — जगजीत सिंह