सत्येन्द्र प्रकाश
गाजियाबाद (एनसीआर)। शहर के मोरटा क्षेत्र स्थित महक जीवन ट्रस्ट एवं आर एल रिसॉर्ट के संयुक्त तत्वावधान में, निलाया ग्रीन्स वासियों के सहयोग से रिसॉर्ट प्रांगण में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा शनिवार को प्रभु प्रसादी वितरण के साथ पूर्णता को प्राप्त हुई। रिसॉर्ट प्रांगण में, मालिक मुकेश त्यागी, ओम प्रकाश झा और मुरारीलाल शर्मा की अगुआई में सात दिन चली संगीतमय कथा के माध्यम से वृंदावन से पधारे कथा-व्यास ब्रज-रसिक स्वामी रामजी दास (बरसाने वाले) ने मुख्यतः तीन संदेश दिए। कथा के अंतिम दिन उन्होंने जहां रति-कामदेव की कथा वर्णन करते हुए बताया कि सेवा लेने वाला उसके योग्य न भी हो तब भी सेवा करने वाले को सेवा का सुफल मिलता है। यह प्रसंग उस समय का है जब कामदेव ने रति को सेवा के अयोग्य संभासुर की सेवा का आदेश दिया था। व्यास जी कृष्ण के 16108 विवाहों की चर्चा कर रहे थे।
दूसरी बात उन्होंने दया, दान या सहायता के संदर्भ में कही। व्यास जी ने कहा कि सहायता करने के बाद कभी एहसास नहीं जताना चाहिए। सहायता ऐसी करें कि दान प्राप्त करने वाला कभी अधीनता/ दबाव न महसूस करे।प्रसंग था मणि के स्वामी सेनजित-प्रसेन भाइयों का। मणि का तात्पर्य यहां माया (धन) से है। कथावाचक के अनुसार वह मणि कृष्ण सेनजित से दान में लेना चाहते थे, ताकि उसका सदुपयोग कर सकें, अर्थात् लाचार, ग़रीब, दुखियारों की सहायता में लगा सकें।
उन्होंने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि अगर आप सत्य की राह पर हैं तो इस बात के लिए तैयार रहें कि कोई न कोई कलंक आपको लगना ही है, इसे उन्होंने भवतव्यता बताया। कहा कि अगर पाप (गलत) नहीं किया कलंक लगाने वालों से निश्चिंत रहें।
बीच-बीच में प्रसंगानुकूल गायन भी चलता रहा, जिसमें हिंदी भजनों के अलावा हल्की-सी गंगा-जमुनी तहजीब (सांप्रदायिक सौहार्द) की भी झलक मिली :
“तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है/ तेरे जहान से रौशन है कायनात मेरी/ तेरी वफ़ा ही मेरी हर ख़ुशी का हासिल है।”…… भगवान कहते हैं: ‘ तू ज़िक्र करता रहेगा, तो मैं भी तेरी फ़िक्र करूंगा।’
देश की राजधानी दिल्ली की सीमा से कुछ ही दूरी पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा (सत्ताह) में दिल्ली की चर्चा न हो तो मानो कुछ कमी रह गई। शायद इसी भाव के मद्देनजर कथा वाचक राम जी दास ने इंद्रप्रस्थ (आज की दिल्ली) में योगेश्वर कृष्ण के संचालन में सम्पन्न हुए पांडवों के राजसूय यज्ञ की रोचक कथा का कुछ इस तरह बयान किया कि श्रोताओं को ज्ञान में वृद्धि के साथ, भरपूर आनंद की अनुभूति हुई। उन्होंने जो बताया उसमें सबसे रुचिकर कृष्ण द्वारा कार्य वितरण का प्रसंग प्रमुख रहा। उन्होंने समिधा, पूजन सामग्री और भोजन व्यवस्था आदि का काम क्षमता और रुचि के अनुसार सौंप दिया। तीन प्रमुख कार्यों में नारी की सौम्यता और कुशलता को देखते हुए भोजन परोसने का काम द्रौपदी को दिया गया। सबसे दिलचस्प रहा कृष्ण का, और कर्ण व दुर्योधन का कार्य। व्यास जी ने हास्य का पुट देते हुए बताया कि कृष्ण ने पत्तल उठाने का काम अपने जिम्मे रखा क्योंकि एक तो वह कार्य करने को जल्दी कोई तैयार न होता, दूसरे यह कि उस कार्य में सर्वाधिक पुण्य लाभ मिलता है और दान वितरण की जिम्मेदारी दुर्योधन-कर्ण शत्रु पक्ष के थे, तो वे पांडवों का धन सामग्री स्वर्ण आदि लुटाने में कोई संकोच नहीं करने वाले थे, और ऐसे में सभी को बुला बुला कर, पकड़ कर देंगे। दूसरे कर्ण तो दानवीर थे ही।
व्यास जी हंसकर कहा कि मुक्तकंठ से दान करना हो शत्रु प्रकृति के व्यक्ति को ही दान की गद्दी पर बैठाना चाहिए। वैसे इस बात पर लोगों ने दबी जबान हंसी करते हुए सवाल भी उठाया।
कथावाचक रामदास जी ने कलश यात्रा, स्थापना के साथ शुभारंभ हो कर सात दिन चले प्रवचन/ भजन में शुकदेव, शिव – पार्वती, रति – कामदेव, राम विवाह, कृष्ण लीला, कृष्ण – सुदामा मैत्री आदि और खासकर कृष्ण की 16108 रानियों का रहस्य खोलते हुए भागवत कथा का समापन इस संदेश से किया : “संत मिलन को जाइए, तजि माया अभिमान/ एक एक पग होत है शत शत यज्ञ समान।”
कथा के दौरान लोग, खासतौर पर औरतें नाचती झूमती दिखीं, जिनका आधार बने ये भजन: “रामहि केवल प्रेम पियारा”…
“गोविंद मेरो है, गोपाल मेरो है, श्री बांकेबिहारी नंदलाल मेरो है…”
“लाडली अदभुत नज़ारा तेरे बरसाने में है।
बे-सहारों का सहारा तेरे बरसाने में है।।”…
कथा समापन अवसर पर व्यास जी ने आयोजकों में प्रमुख ओम प्रकाश झा, मुरारी लाल शर्मा, मुकेश त्यागी, सिन्हा जी, मंजीत, पंडित जी आदि के साथ ही रवि जी (दिल्ली), गोपाल जी (मोदी नगर), विवेक अरोड़ा (निलाया) आदि को सम्मानित किया। श्री झा के नेतृत्व में आयोजकों की ओर से गायन-संगीत मंडली के सदस्यों को भेंट देकर विदाई की गई। कथा सुनने व आरती – पूजन में महिलाएं अग्रणी भूमिका में रहीं। आयोजन प्रमुखों के अलावा जिन श्रद्धालुओं का योगदान और मौजूदगी खास रही उनमें रमेश शर्मा, के.के. पांडे, राम बहाल, वर्मा जी (मिडोज), विनय जायसवाल, विष्णु शुक्ला, शत्रुघ्न प्रसाद साही, दीपक(इलेक्ट्रिक) और सत्येन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव आदि शामिल रहे।