Supreme Court : हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने ‘निर्मिति डेवलपर्स बनाम महाराष्ट्र राज्य’ मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमेंअदालत ने महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर योजना अधिनियम, 1966 (MRTP अधिनियम) की धारा 127के तहत भूमि आरक्षण को समाप्त घोषित किया है। इस फैसले ने भूमि अधिग्रहण औरआरक्षित भूमि के उपयोग से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण दृष्टि कोण प्रस्तुत किया है।
मामलाऔर इसकी पृष्ठभूमि
इस केस की पृष्ठभूमि में यह तथ्य था कि निर्माण क्षेत्र से जुड़ी ‘निर्मिति डेवलपर्स’ नामक कंपनी ने एक भूखंड खरीदा था।यह भूखंड महाराष्ट्र सरकार की विकास योजना के अंतर्गत एक निजी विद्यालय के लिए आरक्षित किया गया था। लेकिन, इस भूखंड के अधिग्रहण या उपयोग की दिशा में कई वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
MRTP अधिनियम की धारा 127 के अनुसार, यदि किसी भूखंड को 10 वर्षों तक अधिग्रहित नहीं किया जाता है, तो भूमि मालिक प्राधिकरण को एक नोटिस भेजकर भूमि अधिग्रहण याआरक्षण समाप्त करने की मांग कर सकता है।यदि नोटिस देने के छह महीने के भीतर अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू नहीं होती, तोआरक्षण स्वतःसमाप्त हो जाता है।
निर्मिति डेवलपर्स ने इसी प्रावधान के तहत संबंधित नगर प्राधिकरण को एक नोटिस भेजा, लेकिन तय समय-सीमा में कोई अधिग्रहण प्रक्रिया प्रारंभ नहीं हुई।इसके बाद मामला न्यायालय तक पहुंचा, जहां भूमि मालिक ने तर्क दिया कि प्राधिकरण केनिष्क्रिय रहने के कारण आरक्षण समाप्त हो चुका है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि MRTP अधिनियम की धारा 127 के तहत भूमि आरक्षण को अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखा जा सकता। न्यायालय ने अपने फैसले में निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया:
- भूमिअधिग्रहणकीसमय–सीमा:अगर आरक्षित भूमि 10 वर्षों तक अधिग्रहित नहीं की जाती है, तो भूमि मालिक को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह नगर नियोजन प्राधिकरण को एक नोटिस देकरआरक्षण समाप्त करने की मांग करे।
- प्राधिकरण की जिम्मेदारी: यदि नोटिस जारी होने के 6 महीने के भीतर अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू नहीं की जाती है, तो संबंधित भूमि काआरक्षण स्वतः समाप्त हो जाता है।
- न्याय का संतुलन:सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सार्वजनिक उपयोग के लिए भूमि आरक्षित करना जरूरी हो सकता है, लेकिन इस आधार पर भूमि मालिक को अनिश्चित काल तक असमंजस में नहीं रखा जा सकता।
- प्रभावित भूमि मालिक के अधिकार :न्यायालय ने माना कि लंबे समय तक आरक्षित भूमि का अधिग्रहण न होने से भूमि मालिक को उसके संपत्ति अधिकारों से वंचित करना अनुचित होगा।
न्यायालय की टिप्पणी और निहितार्थ
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि अगर सरकार या नगर नियोजन प्राधिकरण किसी भूमि को अधिग्रहण नहीं करता, तो एक निश्चित अवधि के बाद भूमि मालिक को अपनी भूमि पर अधिकार बहाल करने का पूरा हक है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में सरकार और नगर नियोजन प्राधिकरणों को यह निर्देश दिया कि वे भूमिअधिग्रहण प्रक्रिया को पारदर्शी बनाएं और अनावश्यक देरी से बचें।
इस फैसले का प्रभाव न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश के अन्य राज्यों पर भी पड़ सकता है, जहां कई भूमि मालिक इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं।अब भूमि मालिकों के पास एक स्पष्ट कानूनी मार्ग है, जिसके माध्यम से वे अपनी भूमिपर पुनःअधिकार प्राप्त कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामलों में एक ऐतिहासिक मिसाल बन सकता है। यह फैसला उन सभी भू-संपत्ति मालिकों के लिए राहत लेकरआया है, जिनकी जमीनें सालों तक आरक्षित रखी जाती थीं लेकिन अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी नहीं की जाती थी। इस फैसले के बादअब राज्य सरकारोंऔर नगर नियोजन प्राधिकरणों कोअधिक सतर्क रहकर समय सीमा के भीतर भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाओं को पूरा करना होगा।