भारतीय दंड संहिता की धारा 498A और भारतीय न्याय संहिता की धारा 85, महिलाओं को दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई थी। इन कानूनों का उद्देश्य महिलाओं को उनके अधिकार दिलाना और उन्हें उत्पीड़न से बचाना था। लेकिन, हाल के वर्षों में इन धाराओं का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या बन चुका है। कई महिलाएँ इन कानूनों का गलत इस्तेमाल करके निर्दोष पुरुषों और उनके परिवारों को झूठे मामलों में फंसा रही हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बिना किसी गुनाह के पुरुषों को कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है, जिससे वे मानसिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से बुरी तरह प्रभावित होते हैं।
इन कानूनों के तहत एक बार मामला दर्ज होने के बाद आरोपी को तुरंत गिरफ्तार किया जा सकता है, जिससे उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रभावित होती है। हाल के वर्षों में यह देखने को मिला है कि कई मामलों में बिना किसी ठोस प्रमाण के भी पुलिस गिरफ्तारी कर लेती है, जिससे निर्दोष लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मामलों में यह स्वीकार किया है कि धारा 498A का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा रहा है। ‘राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य’ (2017) के मामले में न्यायालय ने इस कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की थी और इसके गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 80% मामलों में पुरुष और उनके परिवार निर्दोष साबित होते हैं, लेकिन तब तक उनका सामाजिक और आर्थिक नुकसान हो चुका होता है। हाल के एक मामले में यह देखने को मिला कि एक महिला ने अपने पति पर झूठे दहेज उत्पीड़न के आरोप लगाए और बाद में जांच के दौरान यह पाया गया कि उसका उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ प्राप्त करना था। ऐसे मामलों में पुरुषों को न केवल कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, बल्कि समाज में उनकी छवि भी धूमिल हो जाती है।
संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 प्रत्येक नागरिक को समानता, स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार देते हैं। लेकिन धारा 498A और 85 का दुरुपयोग पुरुषों के इन मौलिक अधिकारों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। बिना उचित जांच के गिरफ्तारी उनके व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है। झूठे आरोपों के कारण न केवल आरोपी बल्कि उसके माता-पिता, बहन-भाई और अन्य रिश्तेदार भी मानसिक और सामाजिक प्रताड़ना झेलते हैं। इसके अलावा, कानूनी लड़ाई में पुरुषों को भारी धनराशि खर्च करनी पड़ती है, जिससे उनका आर्थिक भविष्य संकट में आ जाता है। इन सभी कारणों से यह स्पष्ट होता है कि इन कानूनों का गलत इस्तेमाल पुरुषों के मौलिक अधिकारों का हनन कर रहा है।
धारा 498A और 85 के दुरुपयोग से बचने के लिए पुरुषों को कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए। विवाह से पहले कानूनी रूप से एक समझौता करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है, जिसमें विवाह के बाद उत्पन्न होने वाली कानूनी परिस्थितियों का उल्लेख किया जाए। यदि पति-पत्नी के बीच कोई विवाद होता है, तो सभी संवादों (WhatsApp चैट, कॉल रिकॉर्डिंग, ईमेल आदि) का रिकॉर्ड रखना जरूरी है, जो बाद में बचाव में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, विवाह संबंधी किसी भी समस्या के बारे में अपने माता-पिता और करीबी रिश्तेदारों को पहले से सूचित रखना आवश्यक है ताकि वे संकट की स्थिति में सहायता कर सकें। किसी भी प्रकार के वैवाहिक विवाद के दौरान तुरंत एक अच्छे वकील से सलाह लेना भी उचित होगा। यदि कोई महिला झूठे आरोप लगाती है, तो पुरुष को तुरंत पुलिस और न्यायालय में अपनी सफाई के लिए उपयुक्त दस्तावेज और सबूत प्रस्तुत करने चाहिए। झूठे मुकदमों के कारण मानसिक तनाव से बचने के लिए मनोवैज्ञानिक या काउंसलिंग की सहायता लेना भी एक अच्छा उपाय हो सकता है।
धारा 498A और 85 महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी, लेकिन इनका दुरुपयोग पुरुषों के मौलिक अधिकारों को नुकसान पहुँचा रहा है। झूठे मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे निर्दोष पुरुष और उनके परिवार प्रभावित हो रहे हैं। समय आ गया है कि इन कानूनों में संशोधन किया जाए ताकि इनका दुरुपयोग रोका जा सके। साथ ही, पुरुषों को भी जागरूक होकर अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए। कानून सभी के लिए समान होना चाहिए, न कि एकतरफा।