लखीमपुर खीरी, दुधवा टाइगर रिजर्व में भूरे रंग का लंबी थूथन वाला सांप (अहाक्टुल्ला लॉन्गिरोस्ट्रिस) पाया गया है, जो सरीसृप विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सफलता है। अधिकारियों ने बताया कि इस दुर्लभ और रहस्यमयी प्रजाति को सोमवार को किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य के घास के मैदान में जीवित देखा गया और इसकी तस्वीरें ली गईं। दुधवा के जीवविज्ञानी विपिन कपूर सैनी ने कहा, ‘‘यह खोज उत्तर प्रदेश से इस प्रजाति का दूसरा जीवित रिकॉर्ड है। इससे पहले इसे दक्षिण सोनारीपुर रेंज, दुधवा टाइगर रिजर्व डिवीजन, पलिया खीरी में 2024 गैंडे के स्थानांतरण के दौरान देखा गया था।’’
वन्यजीव जीवविज्ञानी विपिन कपूर सैनी, अपूर्व गुप्ता और रोहित रवि (वरिष्ठ जीवविज्ञानी, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया) के साथ-साथ पशु चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. तल्हा, फार्मासिस्ट संदीप और कर्मचारी भागीराम और नबीशेर खान की टीम द्वारा समन्वित बाघ-ट्रैकिंग गश्त के दौरान सांप को देखा गया था। नियमित निगरानी के दौरान जीवविज्ञानी विपिन कपूर सैनी ने पतले, लम्बे सांप को घास के मैदान के किनारे से जंगल की सड़क की ओर धीरे-धीरे चलते हुए देखा। इसके महत्व को समझते हुए, टीम ने गैर-आक्रामक फोटोग्राफिक दस्तावेजीकरण और इसका संक्षिप्त स्वास्थ्य मूल्यांकन किया, जिससे नमूने की जीवन शक्ति और शारीरिक स्थिति की पुष्टि हुई। वन रेंज अधिकारी मोहम्मद अयूब की देखरेख में सांप को उसी स्थान पर सुरक्षित रूप से छोड़ दिया गया। दुधवा टाइगर रिजर्व (डीटीआर) के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. एच राजा मोहन ने इस खोज के लिए जीव वैज्ञानिकों की टीम की सराहना की और कहा, ‘‘दुधवा में केवल बाघ, हाथी या गैंडे ही नहीं हैं, बल्कि यह कम ज्ञात और पारिस्थितिकी रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियों का एक विकसित भंडार है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अहाक्टुल्ला लॉन्गिरोस्ट्रिस की खोज, विशेष रूप से भूरे रंग का सांप, जो भारत में पहले कभी नहीं देखा गया था, दुधवा में मौजूद जैव विविधता की गहराई को दर्शाता है।’’
नई खोज के बारे में विस्तार से बताते हुए, डीटीआर के उप निदेशक डॉ रेंगाराजू टी ने कहा, ‘‘तराई के मैदानों में अहाक्टुल्ला लॉन्गिरोस्ट्रिस का फिर से दिखना, एक व्यापक पारिस्थितिक आयाम की ओर इशारा करता है।’’ डॉ रेंगाराजू टी ने बताया कि लंबी थूथन वाला वाइन स्नेक एक हल्का जहरीला सांप है, जो अपने पार्श्व संकुचित शरीर, तेज नुकीली थूथन और क्षैतिज पुतलियों से पहचाना जाता है। डॉ रेंगाराजू ने कहा, ‘‘वन विभाग, वैज्ञानिक भागीदारों के साथ मिलकर अब जैव विविधता निगरानी ढांचे को मजबूत करने, सरीसृप सर्वेक्षणों को प्रोत्साहित करने और गुप्त प्रजातियों की पहचान और संरक्षण के लिए स्थानीय क्षमता का निर्माण करने की योजना बना रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दुधवा का पूरा पारिस्थितिकी आयाम सामने आता रहे।