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दशाब्दियों से लगातार हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि करने में तत्पर हैं डॉ. संजीव कुमार

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Home साहित्य

दशाब्दियों से लगातार हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि करने में तत्पर हैं डॉ. संजीव कुमार

हिंदी साहित्य जगत में शायद ही कोई ऐसा हो जो डॉ. संजीव कुमार जी के नाम या उनके हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान से परिचित ना हो। वे अनेक दशाब्दियों से लगातार हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि करने में तत्पर हैं। साहित्य की कोई भी विधा उनके अत्यंत कुशल व सधे लेखन से वंचित हो। फिर चाहे व्यंग्य विधा हो, कविताएं हों, लेख हों, समीक्षा व चिंतन हों या फिर बच्चों व कानून विधा से जुड़ा लेखन हो। आप समस्त क्षेत्रों में अपना सानी नहीं रखते। ऐसे व्यक्तित्व विरले ही होते हैं।

by Mohit Pal
July 4, 2025
in साहित्य
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दशाब्दियों से लगातार हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि करने में तत्पर हैं डॉ. संजीव कुमार
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हिंदी साहित्य जगत में शायद ही कोई ऐसा हो जो डॉ. संजीव कुमार जी के नाम या उनके हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान से परिचित ना हो। वे अनेक दशाब्दियों से लगातार हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि करने में तत्पर हैं। साहित्य की कोई भी विधा उनके अत्यंत कुशल व सधे लेखन से वंचित हो। फिर चाहे व्यंग्य विधा हो, कविताएं हों, लेख हों, समीक्षा व चिंतन हों या फिर बच्चों व कानून विधा से जुड़ा लेखन हो। आप समस्त क्षेत्रों में अपना सानी नहीं रखते। ऐसे व्यक्तित्व विरले ही होते हैं।

वे धीर – गंभीर, अनुशासनप्रिय, छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी समस्याओं के समाधान सहज ही बिना कोई अतिरिक्त तनाव लिए एकदम सहजता से व मुस्कुराते हुए निकाल लेने में एकदम सक्षम हैं। यह उनकी कुशल प्रबंधकीय क्षमता का परिचायक है। साहित्य के गलियारों में आप सदैव चर्चा में रहते आए हैं। और वह चर्चा एक सुलझी हुई और सकारात्मक व समाज को हमेशा कुछ नया समझाने का माद्दा रखती रही है। वे साहित्य की तमाम विधाओं में लगातार लिख रहे हैं और लिखते जा रहे हैं। वे विधाओं के तमाम क्षितिज लांघे जा रहे हैं। कोई विषय नहीं जो कि आपसे अछूता रहा हो। हिंदी जगत के बहुत से लेखक, समीक्षक, आलोचक, संपादक और पाठक भी इस बात को कहने में कोई गुरेज नहीं करते दिखते।

डॉ. संजीव कुमार जी का जन्म 4 फरवरी, 1960 को कानपुर में हुआ था। आपके पिता कॉलेज में प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रवक्ता थे। और माँ एक विदुषी महिला थीं, जिनकी साहित्य, संगीत, कला एवं ज्योतिष में गहरी रुचि थी। आपका बचपन का अधिकांश समय पैतृक गाँव में बीता। अतएव, प्रकृति के परिवेश से गहरा तादात्म्य बन गया।

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आपने सन् 1975 में लेखन प्रारंभ कर दिया था और इनकी पहली कविता ‘प्रतीक्षा’ 1976 में ऋतंभरा में प्रकाशित हुई थी, जिसके बोल थे—
“प्राण तेरे प्राण की मैं एक इच्छा हूँ।
द्वार पर तेरे खड़ी हूँ मैं प्रतीक्षा हूँ।”

आपने 1977 में वाणिज्य स्नातक एवं 1979 में वाणिज्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद भारतीय लागत लेखाकार प्रबंध एवं संस्थान और भारतीय कंपनी सचिव संस्थान की उपाधि परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। ‘बाल श्रमिकों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति’ पर डॉ. साहब ने शोधकार्य किया, जिस पर 1996 में कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा इन्हें पी.एच.डी. की उपाधि से सम्मानित किया गया।

वर्ष 2001 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से विधि स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उसके उपरांत इंडियन लॉ इंस्टिट्यूट से ‘इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स’ में स्नातकोत्तर डिप्लोमा ग्रहण किया।

शोध एवं लेखन में रुचि के फलस्वरूप, कानून के विभिन्न विषयों पर इन्होंने 36 पुस्तकें लिखी हैं जो विभिन्न प्रकाशन संस्थानों द्वारा प्रकाशित की गई हैं। विभिन्न समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं आदि में आपके कानून विषयक आलेख प्रकाशित होते रहे।

1992 में आपने कंपनी सचिव के रूप में दिल्ली में एशियन ग्रुप ज्वॉइन किया और उसके बाद 1993 में एच.बी. ग्रुप, जहाँ लगभग 11 वर्षों तक काम करके कंपनी सचिव के पद से वाइस प्रेसिडेंट (लीगल) एवं कंपनी सचिव के पद तक प्रोन्नति प्राप्त की। इस दौरान मुझे विविध क्षेत्रों में अनुभव प्राप्त होते रहे, जैसे—एकाउंट्स, लागत लेखांकन, सूचना प्रणाली, सिस्टम डेवलपमेंट ‘कोणार्क’ कॉरपोरेट प्रबंधन, विधि एवं मर्चेन्ट बैंकिग विभाग तथा पूँजी बाजार एवं 6 यूचुअल फंड जैसे विभिन्न क्षेत्रों का अनुभव प्राप्त हुआ।

वर्ष 2004 में आपने विख्यात बजाज ग्रुप में लीगल हेड के रूप में प्रवेश किया। बजाज ग्रुप की विकास के नए आयाम स्थापित करते हुए देश ही नहीं विश्व की शीर्षस्थ कंपनियों में गिनती की जाने लगी। यहाँ इनके उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में पूर्णकालिक संचालक नियुक्त किया गया और इसके उपरांत कार्यकारी निदेशक रहे हैं, जहाँ से फरवरी 2016 में अवकाश ग्रहण किया।

आप वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में कानूनवेत्ता के रूप में कार्यरत एवं बी.पी.ए. एडवाइजरी लिमिटेड में प्रबंध निदेशक भी हैं।

साहित्यिक योगदान—

पहली कविता 1975 में प्रकाशित हुई थी; तब से लेकर अब तक लगभग 2000 कविताएँ, गीत, नवगीत, मुक्तक एवं छंदोबद्ध सभी प्रकार के सृजन कार्य करते आ रहे हैं।

आपके साहित्यिक सृजन को चार वर्गों में प्रस्तुत किया जा सकता है—पहले वर्ग में 14 प्रबंध काव्यों को शामिल किया जा सकता है। जिनमें उर्वशी, मेरे हिस्से की धूप, कोणार्क, तिष्यरक्षिता, माधवी, अश्मा, वासुदेव और भानुमती (पौराणिक एवं ऐतिहासिक चित्रों पर आधारित)। गुंजन, अंजिता और आकांक्षा एवं इंदुलेखा प्रतीकात्मक शैली में जीवन आधारित प्रबंध काव्य हैं।

उर्वशी में अर्जुन और उर्वशी की कहानी, कोणार्क में कोणार्क के सूर्य मंदिर की कथा, तिष्यरक्षिता में सम्राट अशोक की चौथी पत्नी की कथा, माधवी में ययाति पुत्री माधवी की कथा, अश्मा में अहल्या की कथा, वासवदत्ता में आगरा की गणिका और वासुदेव की कथा और भानुमती में दुर्योधन की पत्नी भानुमती की कथा। सच तो यह है कि पौराणिक चरित्रों के उल्लेख में एवं उनकी गतिविधियों में न्यायसंगत उल्लेख है या नहीं, ये पहला प्रश्न उत्पन्न हुआ। दूसरा प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि उस चरित्र के साथ कितना न्याय किया गया।।

मेरे काव्य-संग्रह 3 वर्गों में विभाज्य दिखते हैं—पहले वर्ग में ऋतंभरा, ज्योत्सना, उच्छ्वास, निहारिका, मधुलिका, मालविका, स्वर्णकिरण, किरण वीणा, अणिमा आदि संग्रह रखे जा सकते हैं, जिनमें गहन छायावाद कविताओं का आधार है। इन कविताओं में प्रकृति के मानवीकरण, करुणा और वेदना, आत्मा और परमात्मा के संबंधों की छायायानी रहस्यवादिता बहुतायत में देखी जा सकती है। इन कविताओं में विभिन्न प्रकार की रचनाएँ जो मुख्य रूप से वर्णनात्मक शैली में और सहज भाषा में लिखी गई हैं उनका संग्रह किया गया है।

विभिन्न विधाओं को लिखते-लिखाते बाल साहित्य वर्ग में बच्चों के रंग, बच्चों के संग, शीशे की चप्पल, राजकुमारी की शादी और सात बौने अभी प्रकाशित हुए हैं।

साहित्यिक पुस्तकों का ‘शतक’ पूरा करना एक आसान मंजिल नहीं थी किंतु जुनून के सहारे ये लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया। भविष्य में रचनाधर्मिता की गतिशीलता बनाए रखने के लिए ऐसे प्रयास जारी रहेंगे और जब वर्तमान प्रयासों को सम्मान और पुरस्कार द्वारा सराहना मिले तो उत्साह और बढ़ जाता है, और पिछले वर्षों में साहित्य मनीषियों एवं संस्थानों द्वारा समय-समय पर बहुत से सम्मान एवं पुरस्कार प्रदान किए गए हैं, उन सभी में, कुछेक का उल्लेख कर देना भी समीचीन प्रतीत होता है। विभिन्न सम्मानों एवं पुरस्कारों में उल्लेखनीय हैं—

साहित्य श्री सम्मान (2016), हिंदी भाषा भूषण सम्मान (2018), श्री नरेन्द्र देव स्मृति (2020), नंद चतुर्वेदी काव्य पुरोधा पुरस्कार (2021), कोरोना योद्धा पुरस्कार (2021), शिक्षा, ज्योति पुरस्कार (2021), अनवरत साहित्य भारती सम्मान (2021), श्रीमती महादेवी वर्मा साहित्य भारती पुरस्कार (2021), रांगेय राघव साहित्य कीर्ति सम्मान (2022), साहित्य सारथी सम्मान (2022), सुमित्रानंदन पंत स्मृति पुरस्कार (2022), निर्मल वर्मा साहित्य शिरोमणि सम्मान (2022), काव्य श्री सम्मान (2022), शतकवीर सम्मान (2022), मानसरोवर काव्य गौरव सम्मान (2022), हिंदी साहित्य निधि सम्मान (2022), अंतरराष्ट्रीय वागेश्वरी सृजन सम्मान (2022), महाकवि कालिदास सम्मान (2022) आदि-आदि अनेकानेक सम्मान व पुरस्कारों की एक बहुत लंबी अनवरत शृंखला है। और यह सिलसिला लगातार जारी है। सच भी है कि यह साहित्य सेवी वाकई अनेकानेक सम्मानों, पुरस्कारों को पाने का असली हकदार भी है, जो आज भी एक ही समय में एक साथ अनेक साहित्यिक, सामाजिक, व अन्य कार्य बहुत ही तेजी और क्षमता से व क्वालिटी से करने में सक्षम व कर रहे हैं।

आज भी डॉ. संजीव कुमार जी की यह साहित्यिक यात्रा पूरे जोश व जोरों से अथक चल रही है। आप आजकल जहां एक ओर व्यंग्य विधा पर तो काम कर ही रहे हैं, साथ ही अनेक कहानी लेखन, पुस्तकों, उपन्यासों व कविताओं की पुस्तकों पर काम शिद्दत से कर रहे हैं। ये सब पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं और जल्द ही हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि करेंगी।

(लेख का संपादन / संकलन – प्रदीप कुमार शुक्ला)

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