नई दिल्ली : डैनी डेन्जोंगपा भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिभाशाली और बहुआयामी अभिनेताओं में से एक हैं। उन्होंने अपने शानदार अभिनय, दमदार आवाज़ और विशिष्ट शैली से हिंदी फ़िल्मों में एक अलग पहचान बनाई है। चार दशकों से अधिक के करियर में उन्होंने कई यादगार भूमिकाएँ निभाई हैं, विशेष रूप से विलेन के रूप में, लेकिन उनका अभिनय कौशल केवल नकारात्मक किरदारों तक सीमित नहीं रहा।
डैनी डेन्जोंगपा का जन्म 25 फरवरी 1948 को सिक्किम में हुआ था। उनका असली नाम शेरिंग फिंटसो डेन्जोंगपा है। बचपन से ही उन्हें कला और संगीत में रुचि थी, लेकिन उनका सपना भारतीय सेना में शामिल होने का था। उन्होंने प्रतिष्ठित नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) में प्रवेश लिया, लेकिन चीन-भारत युद्ध (1962) के बाद उनके माता-पिता ने सेना में जाने से मना कर दिया। इसके बाद, उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे में दाखिला लिया, जहाँ उनके साथी छात्र जया बच्चन ने उनका नाम “डैनी” सुझाया क्योंकि उनका मूल नाम उच्चारण में कठिन था।
डैनी ने अपने करियर की शुरुआत 1971 में फ़िल्म ज़रूरत से की, लेकिन उन्हें असली पहचान 1973 में गुलज़ार की फ़िल्म मेरे अपने से मिली। इसके बाद उन्होंने धुंध (1973), फक़ीरा (1976) और कालीचरण (1976) जैसी फ़िल्मों में काम किया। हालांकि, डैनी को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि विलेन के किरदारों से मिली। उन्होंने धर्मात्मा (1975), अंधा कानून (1983), हम (1991), घातक (1996) और क्रांतिवीर (1994) जैसी फ़िल्मों में दमदार खलनायक की भूमिका निभाई। उनकी गहरी और भारी आवाज़, सशक्त संवाद अदायगी और शानदार अभिनय ने उन्हें बॉलीवुड के सबसे यादगार विलेन में शामिल कर दिया।
हालांकि, डैनी ने सकारात्मक भूमिकाएँ भी निभाई हैं। अग्निपथ (1990) में उनका “कांचा चीना” का किरदार आज भी याद किया जाता है। इसके अलावा, सनम बेवफा (1991) और चिंतन (1996) जैसी फ़िल्मों में उन्होंने महत्वपूर्ण सहायक भूमिकाएँ भी निभाईं। डैनी एक शानदार अभिनेता होने के साथ-साथ एक गायक और निर्देशक भी हैं। उन्होंने सिक्किमी और नेपाली भाषा में कई गाने गाए हैं। उन्होंने पद्मश्री (2003) पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। इसके अलावा, उन्होंने कई फ़िल्मफेयर और अन्य पुरस्कार भी जीते हैं।