नई दिल्ली : सरोजिनी नायडू भारत की प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री और पहली महिला राज्यपाल थीं। उन्हें उनकी ओजस्वी वाणी और राष्ट्रभक्ति के लिए “भारत कोकिला” (The Nightingale of India) कहा जाता है। उनका जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। उनके योगदान को मुख्य रूप से तीन प्रमुख क्षेत्रों में देखा जा सकता है—स्वतंत्रता संग्राम, साहित्य, और सामाजिक उत्थान।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सरोजिनी नायडू के पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक वैज्ञानिक और शिक्षाविद् थे, जबकि उनकी माता वरदा सुंदरी कवयित्री थीं। प्रारंभिक शिक्षा हैदराबाद में पूरी करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड के किंग्स कॉलेज, लंदन और बाद में कैम्ब्रिज के गिर्टन कॉलेज में अध्ययन किया।
साहित्यिक योगदान
सरोजिनी नायडू ने बचपन से ही कविता लेखन शुरू कर दिया था। उनकी कविताओं में देशभक्ति, प्रकृति और मानवीय भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति मिलती है। उनकी प्रसिद्ध काव्य संग्रहों में “द गोल्डन थ्रेशहोल्ड”, “द बर्ड ऑफ टाइम” और “द ब्रोकन विंग” प्रमुख हैं। उनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति और परंपराओं की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
प्रमुख काव्य संग्रह:
- “The Golden Threshold” (1905)
- “The Bird of Time” (1912)
- “The Broken Wing” (1917)
उनकी प्रसिद्ध कविताएँ:
- Palanquin Bearers
- The Indian Weavers
- In the Bazaars of Hyderabad
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
सरोजिनी नायडू महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थीं और उन्होंने 1915 में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू की। उन्होंने 1917 में होम रूल लीग में भाग लिया और महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के लिए काम किया। 1925 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
- 1905 के बंग-भंग आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
- 1916 में ऐनी बेसेंट के होमरूल मूवमेंट से जुड़ीं।
- महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन (1920) और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) में भाग लिया।
- 1931 में गांधीजी के साथ गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुईं।
- 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुईं।
- 15 अगस्त 1947 के बाद उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल बनीं।
स्वतंत्र भारत में योगदान
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, उन्हें उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने प्रशासनिक कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 2 मार्च 1949 को उनका निधन हो गया।
सरोजिनी नायडू केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि महिलाओं के उत्थान की प्रतीक भी थीं। उनका योगदान भारतीय इतिहास में अमिट है। उनकी कविताएं और प्रेरणादायक जीवन आज भी लोगों को प्रेरित करता है।