नयी दिल्ली, भारत में अब भी 750 कुष्ठ बस्तियां ऐसी हैं जो समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग हैं। कार्यालय मुख्य आयुक्त दिव्यांगजन (सीसीपीडी) के आयुक्त एस. गोविंदराज ने रविवार को यह जानकारी दी। उन्होंने कुष्ठ रोग से जुड़ी धारणा को खत्म करने के लिए सामूहिक प्रयासों की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।
विश्व कुष्ठ दिवस पर एक सेमिनार को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए गोविंदराज ने इस रोग से प्रभावित व्यक्तियों के सामने आने वाली कानूनी चुनौतियों पर भी बात की और उनके अधिकारों और सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक समाधान का आग्रह किया। सीसीपीडी द्वारा आयोजित इस सेमिनार में सरकारी अधिकारियों, गैर सरकारी संगठनों, चिकित्सा विशेषज्ञों और अन्य ने भाग लिया
जिन्होंने कुष्ठ रोग के बारे में मिथकों को दूर करने और प्रभावित व्यक्तियों को इसमें शामिल करने को बढ़ावा देने के विषय में बात की। गोविंदराज ने कहा कि भारत में 750 कुष्ठ बस्तियां समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग हैं और उन्होंने कुष्ठ रोग से जुड़े भेदभाव को समाप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास करने का आह्वान किया। दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के सचिव राजेश अग्रवाल ने कहा कि ‘‘कुष्ठ रोग से संबंधित छुआछूत जाति आधारित भेदभाव से भी बदतर है।’’
तीन दशक पहले महाराष्ट्र के जलगांव में एक कुष्ठ रोग कॉलोनी में बिताए अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह परिवार के सदस्य भी अक्सर इस रोग से पीड़ित लोगों से अलग हो जाते हैं। अग्रवाल ने इस समस्या से निपटने के लिए कानूनी सुधार, शीघ्र पहचान और मजबूत पुनर्वास उपायों की मांग की।
वरिष्ठ वैज्ञानिक एस. शिवसुब्रमण्यम ने बताया कि वैश्विक कुष्ठ रोग के 53 प्रतिशत मामले भारत में हैं। उन्होंने समुदाय आधारित पुनर्वास की आवश्यकता पर बल दिया। सेमिनार में अंतरराष्ट्रीय कुष्ठ रोग एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. पी. नरसिम्हा राव भी शामिल हुए, जिन्होंने कुष्ठ रोग उन्मूलन की चिकित्सीय चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की।